युद्ध

THE FOLLOWING POEM BY VARSHA RANI WON THE THIRD PRIZE IN WINGWORD POETRY COMPETITION OF TWENTY THOUSAND RUPEES (MAIN CATEGORY).

मैं माँ हूँ, मुझे युद्ध नहीं चाहिए,

मैं जीवन देती हूँ, मुझे मौत नहीं चाहिए,

सींचा है, जिन्हें, अपने लहू के कतरों से,

उन नन्ही कोंपलों का संहार नहीं चाहिए,

मैं माँ हूँ, मुझे युद्ध नहीं चाहिए I

युद्ध है विभीषिका,

हार को दिखाए जीत है, यह वो मरीचिका,

काल,देश,धर्म,कोई,चाहे हो कोई जाति,

बेटों के आहत होते ही, उनकी माता भी मर जाती,

घुटनों चलता बेटा, जब एक वीर रक्षक बन जाता है,

पिता, तब तू आसमान बना, ऊपर तना, बहुत इतराता है,

वही बेटा जब चीथड़ों में वापस घर आता है,

मैं माँ हूँ, धरती हूँ, कोख और कलेजा तो मेरा ही रौंदा जाता है I

देशभक्ति के नाम पर दुनिया को टुकड़ों में बांटनेवालों,

फिर इनको बचाने के लिए वतनपरस्ती का जंग छेड़नेवालों,

ऐ पुरुष, किसने इज़ाज़त दी तुझे, मेरे जिस्म पर लकीरें खींचने की,

खेतों, नदियों, पर्वतों और मुल्कों की सूरत में मुझे बांटने की,

फिर इनको बनाये रखने के लिए, मेरे ही बेटों की बलि देने की ?

यह मेरी हिफाज़त है, या तेरे अपने अहम् को महफूज़ रखने की चाह,

कि तू मरवा डालता है, मेरे मासूम जवां बेटों को बेगुनाह ?

देख यह तेरी ही बहू- बेटी है, जिसकी मांग का सिन्दूर गया,

यह उसी के बच्चे हैं, आज जिनके सर पर न कोई साया रहा I

रोज़-ब- रोज़ जीवन का जंग यह सभी लड़ते हैं,

बेपनाह दर्द में न तो, यह जीते हैं और न मरते हैं,

तूने ही नियम-कानूनों,रवायतों और इन मजहबों को बनाया है,

मरने-मारने की गौरवशाली परम्पराओं को चलाया है,

सुन, कायर नहीं हूँ मैं और ना ही मेरी औलाद,

गांठ बाँध ले, और रखना यह बात तू हमेशा याद,

जो जंग रोज़ करते हैं, वह जंग बिलकुल भी नहीं चाहते,

क्योंकि लहू के कतरे-कतरे की कीमत को वो हैं पहचानते,

बेवजह मेरे बेटों का खून बहाने को जो तू आगे आएगा,

मुझे अपने सामने चट्टान जैसा खड़ा पाएगा I

ऐ पुरुष, हमेशा सिलसिलों को तोड़ने की बात न कर,

कभी जोड़ने की राह भी चलने की थोड़ी जुर्रत कर I

न और बरगला मेरे बेटों को जन्नत के नाम पर,

उनकी मासूम जवानियों को यूहीं बर्बाद करने से तो डर I

वे सिर्फ चलते-फिरते बुत नहीं हैं इंसानी,

सुनहरा सपना हैं एक माँ का, उसके जीवन की रवानी I

इतिहास है गवाह, कि सिर्फ जंग हर मसले का हल नहीं होता,

ये बात तू भी जो मान लेता तो, आज यूँ नहीं रोता,

अमन नहीं मिलता उफनते लहू के गहरे दरिया के पार,

चैन से जीने दे मेरे बेटों को, वक्त से पहले उन्हें बेमौत न मार I